घर इतना याद क्यों आता है हमको?
घर इतना याद क्यों आता है हमको?
पहन कर सर्दियों के फूल कोई
मिला करती थी हमसे मुस्कुराकर
है ठंडी फ़र्श पर ज्यों धूप चलती
वो ऐसे नाम लेती थी बुलाकर
रसोई से वो नंगे पाँव आकर
चखा देती थी उस दिन जो बना है
बुजुर्गों को पता था इस बखत जो
इधर आएँ तो पहले खाँसना है
उन्हीं हाथों से मेरा माथा छूकर
कोई हौले से सहलाता है हमको
घर इतना याद क्यों आता है हमको?
मेरे कमरे की दीवारों की सीलन
मेरी आँखों में आकर बस गई है
ये बरसातों की हल्की सी उदासी
मेरी आवाज़ में क्यूँ फँस गई है?
मुझे दहलीज़ अपनी फिर है छूनी
मुझे बारामदे में भीगना है
मेरी यादें वो इक कमरा हो जैसे
जहाँ जाना मुझे शायद मना है
नहीं भाए शहर ये अजनबी सा
ये बेमतलब ही बहलाता है हमको
घर इतना याद क्यों आता है हमको?